भाग्य है अच्छा, तेरा बच गया घर,
आग ने चुन ली तेरी चाही डगर,
और अब तेरा पड़ोसी हो विकल
पीटता रह जायेगा सर साल भर।
भावनाओं की तरफ़ मत भाग,
मत बुझाना आग।
मांग प्रभु से एक ही वरदान,
देश हो कंगाल, या शमशान
हो तेरे घर अन्न का भण्डार,
फूलता-फलता रहे व्यापार,
यूँ तुम्हारे भाग्य जाएँ जाग,
मत बुझाना आग।
देशहित की बात करना छोड़ दे,
मूर्खता को दूर से कर जोड़ ले,
इस धरा को मां समझना है भरम,
भोगता है तू यहाँ अपना करम।
देख, चादर पर लगे ना दाग,
मत बुझाना आग।
व्योमवासी तू, झरे तेरे सुकृत,
हो धरा पर भोगने निज कर्म कृत
कर्मक्षय पर व्योम में फिर जाएगा
मेदिनी से कुछ न ले जा पाएगा।
भरम हैं विद्वेष औ अनुराग
मत बुझाना आग।