बच्चों
की जूठन औ खुरचन की भात
बुढ़िया की घर में बस
इतनी औकात।
गुदड़ी से तन ढककर कटती
है रात
छप्पर है रिसता जब आती
बरसात।
पछुआ है पूस की
दिखाती एक खेल
बुढ़िया
की टुड्डी औ घुटनोँ का मेल।
कुतिया जब करती
पैताने आराम
सर्द हवा करती बुढ़िया
को बदनाम।
गाली
के सालन में आँसू का झोल
बुढ़िया की बिपदा की
पोल रहा खोल।
मरती न जीती है करती
हैरान
बहू कहे, बुढ़िया की
तोते में जान।
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किंवदंती
है कि डायन की जान शरीर में नहीं वरन और कहीं (जैसे तोते में) होती है ।
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