ले, सुन हठी मानधन, प्यारे
उस दरिया के एक किनारे
हरे-भरे थे गाँव हमारे।
आज वहीं फैक्टरी लगी है
दूषण की वह बहन सगी है
देखो, जल में आग लगी है।
नालों से आ गंदा पानी
मिलता गंगा में मनमानी।
माँ कह कोई और कहानी।
"भारत बंद" पुकार किये हैं,
धरना कई हजार दिए हैं,
सौ घायल में चार जिए हैं।
कह, माँ, क्यों होती मनमानी?
इन लोगों ने क्या है ठानी ?
नहीं सुनूंगा सड़ी कहानी।
सुनते नहीं कहा तुम मेरा,
यह सब राजनीति का फेरा,
देश बना लुच्चों का डेरा।
जाकर होमवर्क अब कर ले,
फिर थैले में पुस्तक धर ले
टिफिन और पानी भी भर ले।
जीवन बस में आनी-जानी,
अंट-शंट बकते हैं ज्ञानी
चोर-लुटेरे राजा-रानी।
प्यारी माँ, सच्चाई जानी,
हठ न करूँगा, कहो कहानी
ले लूँ बोतल भर कर पानी।
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