अर्जुन,
उठो,
यह लड़ाई आरपार की है
तुम जीतोगे नहीं तो अवश्य हारोगे
और हारोगे तो, भारत,
डूब जायेगा धर्म और सत्य का अस्तित्व,
जीकर भी तब क्या मक्खियाँ मारोगे?
उठो,
यह लड़ाई आरपार की है
तुम जीतोगे नहीं तो अवश्य हारोगे
और हारोगे तो, भारत,
डूब जायेगा धर्म और सत्य का अस्तित्व,
जीकर भी तब क्या मक्खियाँ मारोगे?
भाई, बहनोई, चाचा, भतीजा
दादा, दोस्त, सहपाठी, कुटुम्बी
किसी का लिहाज़ मत कर, मत कर
सत्य के लिए, धर्म के लिए
देश के लिए, न्याय के लिए,
वाज़िब हक़ के लिए हँसते कटा ले सर |
दादा, दोस्त, सहपाठी, कुटुम्बी
किसी का लिहाज़ मत कर, मत कर
सत्य के लिए, धर्म के लिए
देश के लिए, न्याय के लिए,
वाज़िब हक़ के लिए हँसते कटा ले सर |
जो तुम्हें अपनी भूमि से
करे निष्कासित
भरी सभा में निर्वस्त्र, अपमानित
विवश करे रहने को कनातों में
ठिठुरते हुए घुप अँधेरी रातों में
जीने को भीख, दया-भीगे अनुदान पर
चाकरी की रोटी मिले, वह भी अपमान कर
उनका ख़ात्मा अन्याय का विरोध है
अर्जुन, यह युद्ध प्रतिशोध नहीं,
कंटक-शोध है,
करे निष्कासित
भरी सभा में निर्वस्त्र, अपमानित
विवश करे रहने को कनातों में
ठिठुरते हुए घुप अँधेरी रातों में
जीने को भीख, दया-भीगे अनुदान पर
चाकरी की रोटी मिले, वह भी अपमान कर
उनका ख़ात्मा अन्याय का विरोध है
अर्जुन, यह युद्ध प्रतिशोध नहीं,
कंटक-शोध है,
हिचकिचा नहीं, अर्जुन, धनुष उठा
युद्ध कर |
धरती को दरिंदों से
मुक्त कर, मुक्त कर|
युद्ध कर |
धरती को दरिंदों से
मुक्त कर, मुक्त कर|
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