रविवार, 12 जुलाई 2020

हताशा

साठ वर्षों से सुनता आया हूं

नेताओं  के मनमोहक वादे
खुशफहम इरादे

उनकी जीत के नगाड़े
उनकी प्रीत के पहाड़े

उनके नेम एन्ड फेम
उनके हथकंडे और स्कैम।

हम बस टापते रह गये
शिशिर में कांपते रह गये
अपने अरमानों की अर्थी पर
फटा कफ़न ढांकते रह गये।

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