शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

अर्धसत्य

मध्यरात्रि में मेरी नींद टूट गयी
किसी उल्लू के चीखने की-सी आवाज से
तो देखा कि एक नरकंकाल दरवाजे की तरफ से
मेरे बिस्तर की ओर आ रहा है।

अचरज भी हुआ, और डर भी लगा
हालांकि मैं नास्तिक आदमी हूं
भूत और भगवान को कल्पना कहता हूं
लेकिन कहां से घुस आया यह साला कंकाल
कमरे का दरवाजा तो यकीनन बंद था।

मुझे सहमा हुआ देखकर 
खिटखिटा कर हंसा कंकाल
बोला, निकल गयी हवा?
बड़े इंटेलेक्चुअल बनते हो
हमारे अस्तित्व पर हंसते हो।

कांपती देह और मिमियाती जुबान से
मैंने पूछा, सच-सच बताओ, कौन हो तुम?
बोला कंकाल, मैं सच ही कहूंगा
मैं स्वयं सत्य हूं, 
मैं विवश हूं, झूठ बोल ही नहीं सकता।

मैंने कहा, सो तो ठीक है
लेकिन तुम इतने डरावने, फटेहाल, भूत-से क्यों हो?
अपनी हालत ऐसी क्यों बना रखी है,
क्यों आये हो इस अर्धरात्रि में मेरे पास,
क्या करने, क्या कहने?

बोला कंकाल, इस पूरे शहर में
तुम अकेले नास्तिक हो
तुम्हें छोड़कर सारे लोग आस्तिक हैं
वे भगवान को मानते हैं, शास्त्रों में आस्था है उनकी
वे नहीं मानेंगे मेरी बात, झूठा कहकर हलतार देंगे।

मैं प्रकृतिस्थ हुआ, जान में जान आई
मैंने जरा प्रगल्भ होकर कहा कंकाल से
कि चलो, अपनी बात कहो
सुन तो लूं कि तुम क्या कहते हो
नास्तिक हूं, यकीन कर लेने का वचन नहीं दूंगा।

बोला कंकाल, मैं आखिर जीत ही गया
सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते।
मैंने झुंझलाकर कहा, कौन सी नयी बात है यह!
यह तो सभी जानते हैं, सभी मानते हैं,
यही कहने आ गये तुम, आधी रात में?

कंकाल ठिठियाया, बोला, जानते हों?
सत्यमेव जयते अर्धसत्य है।
मैंने पूछा, तो पूर्णसत्य क्या है?
कैसी-कैसी बातें कहते हो!
चलो, बतलाओ, पूर्णसत्य क्या है?

बोला कंकाल, सुनो, मुझे झूठ ने फंसाया मुकदमे में
ऊपर से नीचे तक पैसा खिलाया
जमीन बिकवायी, जेल भिजवाया
मेरी पत्नी ने आबरू बचाते हुए जान दे दी
मेरा बच्चा बेसहारा मर गया।

अंत में मुझे न्यायालय ने पाया निर्दोष
घर लौटा तो जीवन निरर्थक लगा
मैंने कर ली आत्महत्या, मैं अब प्रेत हूं
सत्य जीता जरूर, मैं गवाह हूं
लेकिन भैया, हार किसे कहते हैं?






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