डालियों को झकोरती
पछुआ हवा चली।
टिकोले हो गए सारे भूलुंठित।
इतने छोटे थे वे
कि उनका अचार भी न बनता।
टूट गए सपने।
अब डालियों से रसाल नहीं टपकेंगे
रस भरे, तूकर।
टिकोले में गुठलियाँ भी न बनी थीँ
सब थे बीजहीन, भविष्यहीन।
काश, पछुआ न बही होती।
ऊमस झेल लेते, पर गिरते नहीं टिकोले
यदि न आयी होती पच्छिम से बयार !
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