शनिवार, 28 मार्च 2015

ख़ुदा हाफ़िज़

मैं जानता हूँ 
कि  कोई किसी के साथ नहीं जाता।  
मैं भी जाऊँगा निपट अकेला(?) 
अंतहीन पथ पर 
निविड़ अन्धकार में। 
पर 
तुम बाहर तो आ सकते थे छोड़ने मुझे
कहने बाय-बाय 
अगरचे अ ड्यू कहना नहीं चाहते थे 
या बॉन व्वायेज कहने का साहस नहीं था।  

मैं जानता हूँ 
कि सपने सावधान करके नहीं टूटते
सपनों के साथी नहीं व्यक्त करते सहानुभूति 
नहीं देते शुभकामनाएँ 
बिछड़ने के पहले। 

ओ निर्मम,
बात तो खरी है 
कि न मैं तेरा था 
न ही तुम मेरे थे 
हमारा मिलना और कुछ समय का साथ    
रेलवे प्लेटफॉर्म पर था,
जहाँ मेरी गाड़ी पहले आ गयी। 
सच है कि हम नहीं मिलेंगे फिर कभी 
पर 
शिष्टाचार के तौर पर 
फिर मिलेंगे तो कह सकते थे!

यह मात्र भ्रम है 
कि मैं अकेला रहूँगा अपनी अनंत यात्रा में ;
मेरे साथ रहेंगे अंधकार,
नीरवता,
और तुम्हारे संग बिताये चंद लम्हों की यादें। 

तो  फिर, 
कहने दो मुझे ख़ुदा हाफ़िज़।    

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