जवान होने के पहले ही
डलिया, कुदाल और फावड़ा
डलिया, कुदाल और फावड़ा
या फिर भूखे पेट और रोटी के बीच
किताबों का जमावड़ा
रोज़गार पाने के लिए कतारों में लगना
टुच्ची नौकरियों की तलाश में भगना
हमारे भविष्य में तो महज़ ख़ानापूरी है|
एक मर्द होने की बेपर्द मजबूरी है|
ज़िद उनकी नया घोसला बनाने की
पुराने घर को कतई भूल जाने की
ख़ातिर-तबज़्ज़ो नये कायम संबंधों की,
माँ-बाप से मिलने पर कठोर प्रतिबंधों की
आना-जाना छोड़िये, याद करना भी गुनाह है
तभी तो आपसे मुहब्बत बेपनाह है|
गुनाह-ए-बेलज्ज़त, मज़बूर नशाख़ोरी है,
एक मर्द होने की बेपर्द मज़बूरी है|
आपकी जूतियाँ और झुका हमारा सर,
उसपर भी लगा हुआ सौ नंबर का डर
मेरा उफ़ कहना भी रबैया आक्रामक है
आपके हाथों में मोबाईल भयानक है|
कुछ भी हुआ नहीं, हमें साबित करना है
जेल जाने से हर वक़्त हमें डरना है
कैसे यकलख़्त मरें, हमें हर-सूं मरना है
जीते हैं, हक़ीक़त से क्यों यूँ मुकरना है?
लटके हम, आपके हाथों में डोरी है,
एक मर्द होने की बेपर्द मज़बूरी है|
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