पंख लगाकर समय उड़ गया
वह तो है कल की ही बात।
अग्निदेव को साखी रख कर
कसमें ली थीं हमने सात।
अग्निदेव को सौंप तुम्हें मैं
लौट रहा अब खाली हाथ।
पंख लगा कर उड़ी गगन में
तुम चंचल परियों के साध।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें