हिमशिला पिघलकर अश्रु बनी कविता में वर्णन करता हूं
मेरा तर्पण तुम कर न सके, में तेरा तर्पण करता हूं।
अब गंधमात्र प्रिय तुम्हें हुआ, कर में क्या है यह मत देखो
होकर देवों के सहचर तुम, नर में क्या है यह मत देखो।
तुम हुए निवासी सुरपुर के, धरती पर क्या है मत देखो
ओ अंतर्यामी, तुम मेरे सीने में दिल आहत देखो।
तेरी मां तेरी नगरी में अबतक तो पहुंच गई होगी
बेकल थी तेरी यादों में अब तेरे पास खड़ी होगी।
उसके आंचल की छाया में संतोष तुम्हें कितना होगा
मैं जा न सका अब तक, सोचो, कितना अफसोस मुझे होगा।
निर्मम होकर भागे का मैं स्नेहिल संबोधन करता हूं
मैं एक अभागा पिता, पुत्र! में तेरा तर्पण करता हूं।
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