मंगलवार, 29 जुलाई 2014

पहिये


हम टायर लगे पहिये हैं 
जो अपने फेंफड़ों में दम रोके 
जेठ की धूप में 
तवे सी जलती ऊबड़ खाबड सड़कों पर दौडते 
गाड़ी को सर पर लिए 
चार गधों को 
जिसे सवारी कह्ते हैं 
मुक़ाम के क़रीब तक ले जाने के लिए ही 
जी रहे हैँ  

नहीं जानते, कब, कहाँ और किस वज़ह से 
हम में से एक 
पंक्चर हो जाएगा,
दम तोड़ देगा 
बीच सड़क पर    
वहां 
जहाँ से सवारियों के मुक़ाम 
बहुत, बहुत दूर हों  
और 
पंक्चर बनाने वाले की दूकान 
ढूंढे मिलती हो  

प्रभु, ऐसा होने देना 
शंकर, तेरा सहारा 
बुरे का हो मुँह काला 
फ़िर मिलेंगे   

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1 टिप्पणी:

  1. हम अब थक चुके हैं
    पंचर हो या न हो
    हमे रुकना ही पड़ेगा
    बिना मुकाम पर पहुंचे

    या फिर
    देश

    संस्थान की तरह
    चलते रहेंगे
    जुगाड़ से
    राम भरोसे
    भोले शंकर की क्रपा से

    जुगाड़ से जोड़े हुए
    पंचरों के सहारे
    फिर चाहे तपी धूप हो
    या
    वर्फ से दूधिया सड़क
    हमारा काम चलना ही तो है
    यही सब सिखाया गया है हमको
    चरेवेती-चरेवेती

    और तुम
    जो मालिक समान
    लदे हुए हो हम पर
    बिना किये लिहाज
    हमारी उम्र का
    हमारे कद का
    कद
    जो कभी हमारा अपना न हो सका

    मानो
    हमारी वेदना को जानो
    हम अब थक चुके है
    हमे चाहिए विराम
    यदि पूर्ण नहीं
    तो कम से कम
    अर्धविराम

    कोई नहीं जानता है मुकाम
    तुम फिर क्यों चला रहे हो हमे
    तुम क्यों नहीं देख पा रहे हो
    रिस्ता लहू
    तुम संभवतः
    जानकार भी अंजान बनने का
    कर रहे हो ढोंग

    हम पहिये
    देखना चाहते हैं तुमको
    बनते हुए पहिये
    और करना चाहते हैं
    तुम पर सवारी
    तुमको जताना चाहते हैं
    मुकाम पर पहुंचने के लिए
    कभी न कभी
    हम सभी को बनना पड़ता है
    पहिया
    और हम इस पूर्वाग्रह से ग्रसित रहते हैं
    कि रौंदते रहेंगे पहियों को
    बिना किसी डर के
    उनके पंचर होने की
    लेशमात्र भी आशंका के परे
    इसीलिए कभी नहीं पहुँचते हैं
    अपने मुकाम पर
    जीवन भर चलते रहने के बाद भी

    समझो हमारी पीड़ा
    हम अब थक चुके हैं
    पंचर हो या न हो
    हमे रुकना ही पड़ेगा
    बिना मुकाम पर पहुंचे

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    विजय

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