मंगलवार, 29 जुलाई 2014

मेरा घर है कारागार


आगे लोहे के दरवाजे 
पीछे पथ्थर  की दीवार 
दाँये बाँये अंधी गलियाँ 
मेरा,  बस, इतना संसार  
 
रात और दिन क्या होते हैं ?
क्या नभ का आकार-प्रकार ? 
हवा,. बता दे, कैसा  लगता 
इन दीवारों के उस पार  

वर्ष, महीने, दिन गुजरते 
फिर क्या  उम्र गुजरती है ?
जीवन, मृत्यु, निराशा, आशा  
केवल  शब्दों का व्यभिचार        
   
हँसना, रोना, कहना, सुनना,
सोने, जगने का व्यापार
अर्थहीन मेरे हित सब कुछ 
मेरा घर है कारागार  

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