आगे लोहे के दरवाजे
पीछे पथ्थर की दीवार
दाँये बाँये अंधी गलियाँ
मेरा, बस, इतना संसार ।
रात और दिन क्या होते हैं ?
क्या नभ का आकार-प्रकार ?
हवा,. बता दे, कैसा लगता
इन दीवारों के उस पार ।
वर्ष, महीने, दिन न गुजरते
फिर क्या उम्र गुजरती है ?
जीवन, मृत्यु, निराशा, आशा
केवल शब्दों का व्यभिचार ।
हँसना, रोना, कहना, सुनना,
सोने, जगने का व्यापार
अर्थहीन मेरे हित सब कुछ
मेरा घर है कारागार । ------
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