बोझ दिल पर
था ज़माने से पड़ा
आज वह
हलका करें कुछ
बोल कर
घूँट पीकर भी ज़हर का, बोलते
बात अपनी चाशनी में घोल कर
शिद्दतों में जिंदगी गुज़री, मग़र
उफ़ नहीं कहते बना मुँह खोल कर
आँसुओं में रात ग़र कटती रहे
क्यों रखें सबंध ऐसे जोड़ कर
आसमाँ की कहकशाँ को मैं चला
दर्द सारे इस ज़मीं पर छोड़ कर
क्या बताएँ हम कि
कल होंगे कहाँ
आज कर
लें गुफ़्तगू जी
खोल कर
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