सुनो और जानो
कि मैं भी तुम्हारी तरह
हाड़-मांस का बना सचेतन पुतला हूं
मुझे भी चाहत थी
कि गुलाबों की बगिया में बच्चों के साथ खेलूं।
सुनो और जानो
कि तुम्हारी खुशहाली के लिए
मैंने मन्नतें मांगी
परिस्थिति देवी को खुश करने को
कितने बलिदान दिये
अपने सपनों के, अरमानों के।
अपने आंसुओं की हर बूंद को
आशा और कामनाओं की सीप में संजोया
कि वे मोती बनकर तेरे काम आयें।
लेकिन ये सब
बीती बातें हैं
छोड़ो, कुछ और कहो,
आये हो मिलने
बहुत दिनों पर।
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