मैं रोना नहीं चाहता
क्योंकि मैं एक धीर गंभीर पुरुष हूं
रोना तो कायरों या स्त्रियों की
पुख्ता पहचान है।
लेकिन ये बेवकूफ आंखें
भर ही आती हैं
पलकें नहीं संभाल पाती हैं
आंसुओं का भार।
युंग कहते थे
कि मर्द के अचेतन में
एक अनिमा रहती है
एक प्रबल नारी
जो चेतन पर कभी-कभार
पड़ती है भारी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें