बचपन में सुनी नानी से यह कहानी थी
बहुत दिन पहले,
एक राजा था, व रानी थी।
रानी के बेटी हुई, नाम रखा देवयानी,
कुछ समय बाद देवयानी हुई सयानी।
राजा राजकाज में उलझे रहते थे
बेटी के व्याह की बात न करते थे।
अनव्याही बेटी सौ मन भारी होती
है
कौन माँ यह भार लिए चैन से सोती है।
आखिर रानी ने हज्जाम से की बात
ढूंढो वर कोई, बिटिया के हों पीले हाथ।
नाई ने धोबी से तब सोचा लेनी सलाह,
धोबी ने 'कमीटी में तीन मेंबर हों' की
चाह।
भिस्ती की यारी उस दिन काम आ गयी
जब उसकी राय मित्रमंडली को भा गयी।
रच गया स्वयम्बर, तीनोँ के पुत्र आ गए,
बन राजकुंवर सारी सभा पर छा गये।
राजा ने हुकुम दिया माला पहनाने
को
बेटी जिसे चाहो, चुनो, दूल्हा बनाने को।
कुँवरि के भाग्य में धोबी का
योग था
उसी की तरफ माला गयी, यही संयोग
था।
बज उठी शहनाई, चिंता मिटी रानी की,
दौड़-दौड़ धोबन ने बहू की अगवानी की।
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