कोलाहल, वह अट्टहास, वह स्मित-अपनापन,
वह मिलना, वह चौक, वहां घंटों बतियाना,
वे इतवार, धूप में सिकना, चाय पकौड़े,
एक हवा के झोंके से सब बिखर गए क्या,
या, सारे रिश्ते केवल छिछले, सतही थे ?
धूप सहमकर किसी शाख पर जा चिपकी है
श्यामल बादल थके-थके, नभ के कोनों में
लाल हुए जा रहे विफलता की ब्रीड़ा से
हवा अधर पर उंगली रख कर मौन हो गयी
यह ऊमस, बेबसी, कहाँ से आ टपकी है !
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