पाला भरम कि रात लाएगी नयी सुबह,
पर मुफ़लिसी के दौर सुबहोशाम वही है ।
हर कश्मकश का आख़री ज़बाब एक सा,
हिक़मत तो है बदल रही, अंजाम वही है ।
सूरज है सर पै तप रहा, भट्ठी बनी जमीं
जो नाम दें, क़ुबूल, मग़र काम वही है ।
हर चीज़ के हैं मोल आसमान छू रहे,
दिन-भर के पसीने का, मगर, दाम वही है ।
हाँ, आप से बदल के वो हुज़ूर बन गए
हम तुम से तू बने, हमारा नाम वही है ।
मुंसिफ़ बदल गए हैं, अदालत बदल गयी,
कानून वही है, सर-ओ- इल्ज़ाम वही है ।
चीतों की ज़गह भेंड़िये, पर भेड़ के लिए
तब्दील हुए मंजर, पैग़ाम वही है ।
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