मंगलवार, 12 अगस्त 2014

------------ ममता की रेखा

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लो, सुनो, आज ममता की एक कहानी,
मैंने बचपन में था गवाक्ष से देखा । 
थी कौन न पूछो, थी जानी-पहचानी, 
उसकी यादों की अमिट हृदय पर रेखा । 
             2
नत-मस्तक, नयन निमीलित, झरते सीकर,      
है खड़ी, स्यात्, करती प्रभु नामोच्चारण,      
सद्योस्नाता, वह भीगे वसन, कुएँ पर,
अस्फुट स्वर में, करती-सी व्यथा-निवेदन ।
             3 
दीपक, बाती, माचिस ले उड़े प्रभंजन,   
हर कोने पर तम का सचेत पहरा है |
कर सकता है  क्या स्नेह स्वतः आलोकन ?
मेरे  जीवन का  अंधकार गहरा है | 
             4 
जब अविरल सारी रात बरसते बादल, 
आकुल सूखी धरती की प्यास बुझाने,  
चूते  छप्पर के नीचे फैला आँचल 
बैठी मैं, बच्चों पर चंदोवा   ताने |
             5
फ़ाक़े पर फ़ाक़ा, अन्न नहीं है घर में 
निर्वस्त्र नहीं, पर नग्न-प्राय हैं सारे |
नर हार चुका है रोटी के संगर में 
कर आँखें बंद पड़ा  है एक किनारे |    
             6
तुम भूल न जाना उन वचनों के बंधन !
मेरे हित सारी धरा शून्य सम्प्रति है,   
नर से निराश नारी का क्या अवलंबन ! 
नारायण तेरे बिन मेरी क्या गति है ?   

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1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर ... अति सुन्दर...

    भूल नहीं सकता हूँ बचपन की पीड़ा
    क्रंदन कम्पन दर्पण अर्पण सब साथ लिए
    अब काल परीक्षा में बंधन करते क्रीडा
    क्यों चक्षु कर्ण पग अंस प्राण अवसाद किये

    विजय

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