बुधवार, 20 अगस्त 2014

विद्वत्तमा की नगरी में कालिदास

विद्वत्तमा की नगरी में, 
विवाह के इच्छुक, 
पर वाद में विजित,
ख्याति की खयानत से खीजे,
पंडितों ने किया प्रण 
कि अगर इस ज्ञान-गर्विता को
सबक नहीं सिखाया,
आठ-आठ आँसू नहीं रुलाया,
नहीं समझाया कि हम क्या चीज हैं,
तो, विद्वज्जनों, 
हम सचमुच नाचीज हैं । 

चल पड़े वे, ढूंढ़ने एक महामूर्ख,
जो जल्द ही मिल गया। 
काट नहीं रहा था डाल 
जिस पर वह बैठा था,
अलबत्ता, काट चुका था वह डाल,
गिरा हुआ था औंधे मुँह । 

कहा पंडितों ने, शाबाश
उठो, झाड़ो बदन,
चलो हमारे साथ,
करवाएंगे शादी तेरी 
राजकुमारी से 
बनायेंगे तुम्हें राजा का दामाद। 
करना तुम्हें है एक छोटा सा काम,
जब तक न हो जाये काम तमाम,
इशारों से करना बात,
बोलना नहीं कुछ,
बिना लिए फेरे सात। 

फिर हो गया शास्त्रार्थ शुरू,
विद्वत्तमा और दुल्हेराम थे रूबरू
उसने एक उँगली दिखाई तो  
दूल्हे ने दिखाई उँगलियाँ दो,
उसने दिखाई तर्जनी 
इसने दिखाया अँगूठा,
वह हँसी, तो, यह रूठा।   
उसने दिखाया पंजा,
इसने दिखाया मुक्का,
नन्हे-से तीर पर भारी-सा तुक्का।   
सभी निष्णात
पंडित-जन बैठे ही थे, 
अर्थ निकालने की ख़ातिर 
फ़न के उस्ताद, 
मँजे हुए, पक्के शातिर। 

बेबश, मूकीकृता,  
विद्वत्तमा हार गयी,
पंडितों की चाल
डंका पीट, बाज़ी मार गयी ।     

दुल्हेराम मालामाल । 
राजा के दामाद बने 
पहन कर जयमाल । 
पंडितों ने डाला 
वर की योग्यता पर प्रकाश,
ये गुरु हमारे हैं,
यही हैं कालिदास। 

दोस्तों, ये सचमुच हैं कालिदास,
अब ये बनाएंगे उष्ट्र को उट्र का अपभ्रंश 
कौन यहाँ बैठा है लट्ठ लिए 
करने प्रमाणित कि 
उष्ट्र का अपभ्रंश उट्र है। 

अब ये रचेंगे नया मेघदूत, रघुवंश 
नया होगा घिसा-पिटा कुमारसंभव, 
होंगे आर्गनाइज्ड दर्जनों सेमिनार, 
छपेंगे इनके अनेक रिसर्च-पेपर।
प्रकृति के नियमों को ये प्राकृत में घोलेंगे,
लिंग, जाति, भेद-भाव हर ज़गह टटोलेंगे,
वर्ष में दो बार ज्ञान की लँगोट खोलेंगे,  
एसी और ईसी में हर मुद्दे पर बोलेंगे। 


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एसी = Academic Council; ईसी = Executive Council
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1 टिप्पणी:

  1. सुंदर /....

    इस कविता मे विस्तार की बहुत संभावना है
    क्योंकि
    यह विषय मेरे ह्रदय को भी लुभावना है ...

    धन्यवाद... मुझे अनायास ही गोपाल प्रसाद व्यास की दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं...

    कवि की अपनी सीमाएं हैं, कहता जितना कह पाता है
    कहने को इतना ज्यादा है, अनकहा अधिक रह जाता है॥

    विजय

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