शनिवार, 2 अगस्त 2014

सर्द जज़्वातों से यूँ मत खेलिये

हम गुनाहों की गली में चस्प हैं,
आप क्यों हैं रंज? हैं तो झेलिये 

है नसीहत आपकी बेशक़ भली,
उसके मानी कुछ न औरों के लिये   

नालियों में हम पड़े हँसते तो हैं,
उम्र भर रोते जिये तो क्या जिये  

जिसने भी  ज़द्दोज़हद की उम्र भर,
आज ख़ुद ही तोलियेक्या कर लिये  

रौशनी नंगा दिखाये ग़र हमें,
फ़ायदे क्या हैं जलाने के दिये  
  
ज़र्द हो वे टहनियों से गिर गये
सर्द जज़्वातों से यूँ मत खेलिये  


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1 टिप्पणी:

  1. नफ़ा-नुक्सान कुछ नहीं साहब
    दीप का कर्म सिर्फ जलना है
    रोशनी कौन किसको देता है
    ज़िंदगी भर सवाल चलना है
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    साँझ ढलते टहलते देखा वहाँ
    झील में मछ्ली सुखी होती तो है
    इक नदी रोकर समंदर मे मिली
    नालियों में भी हंसी होती तो है
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    कोशिशें मुकम्मल हों रही हैं दीखती
    जिंदगी की राह में मोती तो है
    आँख का पानी फ़ज़ीहत कर गया
    हर नसीहत रोशनी देती तो है
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    मैं रहा मशगूल अपने आप में
    था नहीं कुछ फर्क मुझमे आप मे
    राह चलकर मुश्किलों की देख ली
    क्यों भला हूँ व्यस्त मैं इस माप में

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