हम तो हुए राख सनम,
अब तुम्हें जलाएंगे
बाग़ के दो झुरमुटों में
तनहा, गीत गाएंगे ।
कोयल की कूक में तुम
व्यथा अपनी भर देना
बाग के हर कोने को
आह-ए-हिज़्र कर देना।
पिहू-पिहू रटकर मैं
तुम्हें याद कर लूंगा
चाँद की खूँटी पर
टांग प्राण, मर लूंगा ।
सात जनम साथ नहीं
हँस सके, तो रो लेंगे
चादर-चुनरी के दाग,
आँसुओं से धो लेंगे ।
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