सोमवार, 25 जून 2018

भरम

क्या वो आया था कल रात?
नहीं, नहीं
हवा के झोकों से साँकल बजी होगी|
क्या उसने बुलाया मुझे?
नही, नहीं
यूँ ही नटखट पत्तियाँ हिली होंगी|
क्या उसने पुकारा मुझे?
नहीं, नहीं
मंदिर की घण्टियाँ बजी होंगी|
क्या वह चाहता था मुझे,
नहीं, नहीं
वह तो मेरे मन का भरम था,
देर से जाना उसे, बड़ा बेरहम था|

रविवार, 24 जून 2018

ठूँठ


वहाँ, वो, ठूँठ-सा सूखा दरख़्त,
खड़ा है, बाजुओं को उठाये, आसमां की ओर,
माँगता दुआएँ, जो बे-असर होंगी|
सारे पत्ते, काँपते और ज़र्द,
सर्द हवाओं से डरे,
छोड़ गए उसका साथ,
काँपते तन को करने गर्म
चले गए किसी अलाव के पास|
वे अज़ीज़ पत्ते
तब्दील हो राख में
उड़-उड़ कर लिपट गए
ठूँठ के तने से,
पुरानी यादों की तरह|
अब बहारें कभी न आयेंगीं,
कभी न फूटेगी कोई कोंपल|
आज या कल आएगा तूफ़ान,
और वह ठूँठ बन जायेगा जलावन|
ठूँठ की यही नियति है,
और मेरी ?