रविवार, 12 जुलाई 2020

हताशा

साठ वर्षों से सुनता आया हूं

नेताओं  के मनमोहक वादे
खुशफहम इरादे

उनकी जीत के नगाड़े
उनकी प्रीत के पहाड़े

उनके नेम एन्ड फेम
उनके हथकंडे और स्कैम।

हम बस टापते रह गये
शिशिर में कांपते रह गये
अपने अरमानों की अर्थी पर
फटा कफ़न ढांकते रह गये।

सोमवार, 6 जुलाई 2020

पर्यावरण पाखंड







क्या होते हैं सर्पदंश के भयावह परिणाम
यह अटारियों पर बैठी, बाल सुखाती, 
बहू जी से नहीं
उस बाप से पूछो
जिसका बेटा सांप काटे मरा
या उस बेवा से पूछो
जिसकी मांग का सिंदूर
चाट गयी नागिन।
लोहे का स्वाद लुहार से नहीं,
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।

इसे न मारो
उसे न मारो
अभयारण्य में दामाद बनाकर रखो
बाघ ने मजदूर को खा लिया
बाघ की पीठ थपथपाओ
अच्छा किया, शाबाश मेरे शेर,
वह जंगल उजाड़ता मजदूर
कितना बदमाश था
अच्छा किया तुमने उसकी बोटियां चबाकर।

प्रकृति का संतुलन  मत बिगाड़ो।
कौन बिगाड़ता है प्रकृति का संतुलन?
प्रकृति गुड़िया है न,
मानव के हाथों का खिलौना।
डायनोसोर ने कौन संतुलन बिगाड़ा था?
कितने वैज्ञानिक थे डायनोसोर?

प्रकृति का इतिहास पढ़ो
प्रकृति घरोन्दे बनाती  है
बिगाड़ती है
और फिर बनाती है नये घरोन्दे।

मानव नहीं रहेगा कल
क्यों रहे?
क्यों कोई और जीव सफल नहीं हो आत्मरक्षण के युद्ध में?
बाघ और सांप बचा लेंगे मानव को?
बचा भी लें तो
उनकेे संवारे भविष्य की
क्या होगी रूपरेखा?

भूं-भां पंडितों
सोचो इसपर
अभी भी समय है।