शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

रिश्ता ही क्यों जोड़ गए तुम


मेरी खता बिना बतलाये 
मुझे अकेला छोड़ गए तुम

मुझे भ्रमित कर चौराहे पर
बदल राह किस मोड़ गए तुम

मन था अरमानों का मेला
झटके में सब तोड़ गए तुम

बदला लेकर किस क़ुसूर का
तन मन प्राण मरोड़ गए तुम

इतनी जल्दी जाने की थी
रिश्ता ही क्यों जोड़ गए तुम
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बुधवार, 11 जुलाई 2018

मज़बूरी



जवान होने के पहले ही
डलिया, कुदाल और फावड़ा
या फिर भूखे पेट और रोटी के बीच 
किताबों का जमावड़ा 
रोज़गार पाने के लिए कतारों में लगना
टुच्ची नौकरियों की तलाश में भगना
हमारे भविष्य में तो महज़ ख़ानापूरी है|  
एक मर्द होने की बेपर्द मजबूरी है| 

ज़िद उनकी नया घोसला बनाने की
पुराने घर को कतई भूल जाने की 
ख़ातिर-तबज़्ज़ो नये कायम संबंधों की,
माँ-बाप से मिलने पर कठोर प्रतिबंधों की
आना-जाना छोड़िये, याद करना भी गुनाह है
तभी तो आपसे मुहब्बत बेपनाह है| 
गुनाह-ए-बेलज्ज़त, मज़बूर नशाख़ोरी है,
एक मर्द होने की बेपर्द मज़बूरी है| 

आपकी जूतियाँ और झुका हमारा सर,
उसपर भी लगा  हुआ सौ नंबर का डर
मेरा  उफ़ कहना भी रबैया आक्रामक है
आपके हाथों में मोबाईल भयानक है| 
कुछ भी हुआ नहीं, हमें साबित  करना है
जेल जाने से हर वक़्त हमें डरना है
कैसे यकलख़्त मरें, हमें हर-सूं   मरना है
जीते हैं, हक़ीक़त से क्यों यूँ मुकरना है?
लटके हम, आपके हाथों में डोरी है,
एक मर्द होने की बेपर्द मज़बूरी है|       
                 
   
      

सोमवार, 9 जुलाई 2018

ग़ुलामी


इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है|

देखा है रोटी को तकती 
भोले  शिशु की आँखों को 
देखा है धरती पर बिखरे 
कटे रेशमी पाँखों को 
देखा है आतप से जलकर 
पटलों का असमय झरना 
देखा है माँ की गोदी में 
भूखे बच्चे का मरना| 

मैंने सूखी फ़सल, किसानों की नाकामी देखी है|   
इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है|   

आशा टूटी अथक  
क़िताबी मन्त्रों को रटते-रटते 
ईंटों के भट्ठे पर देखा
शिक्षित युवकों को खटते
कूड़ों पर झोपड़ी बनाकर
देखा शहरों में रहना 
देखा अम्मी के सपनों के 
महलों का ढह कर गिरना| 

अस्मत बेच रही मज़बूरी, बेबस हामी देखी है|
 इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है|

देखा है आदर्श  बेचते
नक्क़ालों को, चोरों को 
देखे मैंने केशर चरते
गधों, बकरियों, ढोरों को 
जिसकी लाठी भैंस उसी की,
न्यायालय बिक जाते हैं
लम्बे हाथ न्याय के
अपराधी तक आ  रुक जाते हैं| 

क़ातिल के तन पर लिपटी चादर रामनामी देखी है|  
इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है| 

देखे हैं  बाज़ार जहाँ
ईमान खरीदे जाते हैं
देखे हैं बाज़ार जहाँ 
भगवान खरीदे जाते हैं
देखे हैं  बाज़ार जहाँ 
इंसान खरीदे जाते हैं
मुल्क़ बेचकर बँगले 
आलीशान खरीदे जाते हैं| 

खुदगर्जी  में लिपटी आज़ादी की ख़ामी देखी है|       
इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है|