सोमवार, 9 जुलाई 2018

ग़ुलामी


इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है|

देखा है रोटी को तकती 
भोले  शिशु की आँखों को 
देखा है धरती पर बिखरे 
कटे रेशमी पाँखों को 
देखा है आतप से जलकर 
पटलों का असमय झरना 
देखा है माँ की गोदी में 
भूखे बच्चे का मरना| 

मैंने सूखी फ़सल, किसानों की नाकामी देखी है|   
इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है|   

आशा टूटी अथक  
क़िताबी मन्त्रों को रटते-रटते 
ईंटों के भट्ठे पर देखा
शिक्षित युवकों को खटते
कूड़ों पर झोपड़ी बनाकर
देखा शहरों में रहना 
देखा अम्मी के सपनों के 
महलों का ढह कर गिरना| 

अस्मत बेच रही मज़बूरी, बेबस हामी देखी है|
 इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है|

देखा है आदर्श  बेचते
नक्क़ालों को, चोरों को 
देखे मैंने केशर चरते
गधों, बकरियों, ढोरों को 
जिसकी लाठी भैंस उसी की,
न्यायालय बिक जाते हैं
लम्बे हाथ न्याय के
अपराधी तक आ  रुक जाते हैं| 

क़ातिल के तन पर लिपटी चादर रामनामी देखी है|  
इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है| 

देखे हैं  बाज़ार जहाँ
ईमान खरीदे जाते हैं
देखे हैं बाज़ार जहाँ 
भगवान खरीदे जाते हैं
देखे हैं  बाज़ार जहाँ 
इंसान खरीदे जाते हैं
मुल्क़ बेचकर बँगले 
आलीशान खरीदे जाते हैं| 

खुदगर्जी  में लिपटी आज़ादी की ख़ामी देखी है|       
इस स्वतन्त्र भारत में मैंने नग्न ग़ुलामी देखी है|  

  

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