रविवार, 14 अगस्त 2016

माँ कह एक कहानी


माँ कह एक कहानी। 

ले, सुन हठी मानधन, प्यारे
उस दरिया के एक किनारे
हरे-भरे थे गाँव हमारे। 

आज वहीं फैक्टरी लगी है
दूषण की वह बहन सगी है
देखो, जल में आग लगी है। 

नालों से आ  गंदा पानी
मिलता गंगा में मनमानी। 
माँ कह कोई और कहानी। 

"भारत बंद" पुकार किये हैं,
धरना कई हजार दिए हैं,
सौ घायल में चार जिए हैं। 

कह, माँ, क्यों होती मनमानी? 
इन लोगों ने क्या है ठानी ?
नहीं सुनूंगा सड़ी कहानी। 

सुनते नहीं कहा तुम मेरा,
यह सब राजनीति का फेरा,
देश बना लुच्चों का डेरा। 

जाकर होमवर्क अब कर ले,
फिर थैले में पुस्तक धर ले
टिफिन और पानी भी भर ले। 

जीवन बस में आनी-जानी,
अंट-शंट बकते हैं ज्ञानी
चोर-लुटेरे राजा-रानी। 

प्यारी माँ, सच्चाई जानी,
हठ न करूँगा, कहो कहानी
ले लूँ बोतल भर कर पानी।

सोमवार, 8 अगस्त 2016

समीक्षा

पंडित का बेटा
अपने बाप की तरह पाखंडी नहीं है
सारी लड़कियों को
एक ही नज़र से देखता है।

बाघ नहीं करते,
छुआ-छूत का विचार,
गाय को, बकरी को
पंडित को, परीहा को,
ऊँच को, नीच को,
एक ही नज़र से देखते हैं,
एक ही दाढ़ से चबाते हैं।

बाढ़ नहीं करती धरम के सवाल,
झोपड़ी और महल में फ़र्क,
फ़सल भरे खेतों और ऊसर में अंतर,
सबको समानरूपेण गले लगाती है,
अपने साथ ले जाती है।

धूमिल ने कहा था
मोची के लिए हर आदमी
एक जोड़ी जूता है।
सच ही कहा था।

नेता के लिए हर बंदा एक वोटर है।
हर घटना मसाला है,
चाहे वह बाढ़ हो, गौहत्या हो, गौरक्षा हो,
महामारी हो, कार्नेज हो, क़त्लेआम हो,
ईद हो, मुहर्रम हो, दिवाली हो।

और एक हम हैं
ख़्वाहमख़्वाह, कटे जाते हैं
ग़लत और सही की करने समीक्षा।