सोमवार, 8 अगस्त 2016

समीक्षा

पंडित का बेटा
अपने बाप की तरह पाखंडी नहीं है
सारी लड़कियों को
एक ही नज़र से देखता है।

बाघ नहीं करते,
छुआ-छूत का विचार,
गाय को, बकरी को
पंडित को, परीहा को,
ऊँच को, नीच को,
एक ही नज़र से देखते हैं,
एक ही दाढ़ से चबाते हैं।

बाढ़ नहीं करती धरम के सवाल,
झोपड़ी और महल में फ़र्क,
फ़सल भरे खेतों और ऊसर में अंतर,
सबको समानरूपेण गले लगाती है,
अपने साथ ले जाती है।

धूमिल ने कहा था
मोची के लिए हर आदमी
एक जोड़ी जूता है।
सच ही कहा था।

नेता के लिए हर बंदा एक वोटर है।
हर घटना मसाला है,
चाहे वह बाढ़ हो, गौहत्या हो, गौरक्षा हो,
महामारी हो, कार्नेज हो, क़त्लेआम हो,
ईद हो, मुहर्रम हो, दिवाली हो।

और एक हम हैं
ख़्वाहमख़्वाह, कटे जाते हैं
ग़लत और सही की करने समीक्षा।      

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