शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

पुनर्जन्म


हम मरकर इंतज़ार नहीं करते
किसी लेखा-जोखे का,
तैर कर कुछ अरसे तक,
हवा में इधर-उधर,
किसी बच्चे को डराकर,
किसी सुंदरी पर आकर
कुछ करिश्मे दिखाकर
हम लौट आते हैं
अपने कर्मों, संस्कारों
व अपूर्त अभिलाषाओं को साथ लिए
चौरासी लाख में से किसी एक योनि में।
*
और
यह अटल सत्य है
मानव के लिए, दानव के लिए,
पशु, पक्षी, कीट पतंग के लिए भी।
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तभी तो कुछ लोग,
भूँकते हैं, गुर्राते हैं,
नज़र-ए-इनायत के लिए पूँछ भी हिलाते हैं।
जिसका खाते हैं उसी का गाते हैं।
दरवाज़े से ग़र घुसें दरवेश
तो, बेशक, उसे भी काट खाते हैं।
मौक़ा ग़र मिल जाये तो सड़कों पर
बेख़ौफ़, बेफ़िक्र इश्क़ फ़रमाते हैं।
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