मंगलवार, 11 सितंबर 2018

लौटा बहुत दिनों के बाद

क्यों पीपल की शीतल छाया या धनखेतों की हरियाली
जोड़ती मुहल्लों को राहें टेढ़ी-मेढ़ी चलने वाली
सोंधी सुगंध तेरी मिटटी की क्या जानूँ क्यों खींच रही
क्यों गेरुआ से शीतल बयार आ प्राणों को है सींच रही
पर अर्थ ढूढ़ती ऑंखें मुझको घूर रहीं आते-जाते
तेरी गोदी में आकर के क्या जुर्म किया मैंने माते?

तेरी मिट्टी के कण चिपके मेरे अवचेतन में मन के
आया था शिशु बन कर अबोध कोने में तेरे आंगन के
मिट्टी तेरी, पानी तेरा, सांसें तेरी, आँगन तेरा
चंदा तेरा, सूरज तेरा, तारों से भरा गगन तेरा
निर्बल, नंगा, भूखा-प्यासा मैं नन्हीं जान लिए आया
तुमने ममता के आँचल से ढँक मुझे प्यार से सहलाया|

हर चूज़ा तनिक बड़ा होकर तज नीड हवा हो जाता है
दाना-पानी के लिए जूझता कहाँ कहाँ हो आता है
पर ज्यों ढलती है शाम, अँधेरा बढ़ता, रात बिताने को
चूज़ा घर को लौटता, वहाँ निश्चिन्त निडर सो जाने को
रोज़ी के लिए भटकते जब चूज़े भी हैं घर फिर आते
तेरी गोदी में आकर के क्या जुर्म किया मैंने माते?