बुधवार, 3 सितंबर 2014

सबेरा

रात में धरती 
आसमां से मिलती है। 
सूरज जनमता है
गोल-मटोल लाल। 
उसके आते ही 
चिड़ियाँ गातीं है सोहर
भागते हैं छौने इधर-उधर 
जगाने सबको, देने सन्देश 
कि चाँद के भाई हुआ है,
चाँद से भी चमकदार, भरा-पूरा। 

चाँद, जिसका मुँह टेढ़ा रहता है
तक़रीबन हमेशा,
महीने में उनतीस दिन, 
देखकर सूरज को, 
उदास हो जाता है। 
चाँद के सारे दोस्त 
जो रात की महफ़िल में 
सितारों की तरह रौशन थे,                
गुम हो जाते हैं,
छोड़ जाते हैं उसका साथ,
जैसे उसे कभी जानते न हों। 

आसमान हँसता है,
धरती शरमाती है,
छुप जाती है घने पेड़ो की ओट में,
पर उसका खिला चेहरा 
खेलता है आँख-मिचौनी।
चंचल पवन करता है ठिठोली,
शायद उनका रिश्ता देवर-भाभी का है। 

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