सोमवार, 17 अगस्त 2015

मौत

मौत,
या फिर पार करना मील का पत्थर 
(उन सपथिकों की नज़र में,
हमसफ़र जो थे,
अचानक साथ छूटा किन्तु जिनका,
जो बढ़े, पर, आ रहे हैं उसी रास्ते पर)। 

मौत,
या फिर बदलियों में चाँद का छुपना 
(अचानक मुँह छुपाना 
चाँदनी का बादलों में,       
या कि कहना इंगितों में,
छोड़ दो तन्हा मुझे,
या, हो सके तो, भूल जाओ)। 

मौत,
या फिर  शर्करा का वारि में विलयन        
(व्याप्त होना, छोड़कर सीमित रवे की देह,  
रूप का परित्याग,
रस का संप्रवर्तन,
स्वादमय जीवन किसी निस्वाद को देना)। 

मौत 
या फिर बंद होती इक खुली पुस्तक
(इक कहानी जो कहीं सचमुच घटी हो,
या कि जो सिरजी गयी हो कल्पना में,
या कि फिर वृत्तांत हो यायावरी का,
या कि वह आद्यन्त हो 
उन कामनाओं का समुच्चय,
जो कभी साकार होकर जी न पायीं,
किन्तु पाकर लेखनी से रूप,
बन गयीं आख्यायिका सी)।
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सुधांशु कुमार मिश्र     

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