गुरुवार, 6 अगस्त 2015

पुकार

आओ,
बिछी हुई हैं पाँच हजार जोड़ी प्रतीक्षातुर आँखों की,
वर्षों से, स्वागत करने तुम्हारे एक जोड़ी चरणों की,
या अभयंकर मुद्रा में उठे करकमल की,
आओ, आओ, 
गज की नहीं तो गज भर की पुकार पर,
आओ, कृपा कर । 

सुजला, सुफला, मलयज-शीतला,
नीली-हरी पहाड़ियों से घिरी यह धरती,
कितने अरमान लिए बैठी है,
कि  इसकी हरी-हरी घासों से आच्छादित मैदानोँ में,
विचर सकें, चर सकें, लीद सकें मांसल पशु,
सच बनाने बिचारे धूमिल के स्वप्न। 

आओ,
स्नेहायित कर से सुपोषित, लावण्यमयी ललना के सीमन्त
तेरे चरणों की बाट जोहते हो गए हैं क्षाम;
बनो उसके प्राण, भरो उस पथ को,
ऊषा की लाली से। 

जन-मन के अधिनायक,
भाग्यविधाता,
हम मांग रहें हैं कि हम सब,
तव शुभ नामे जागें,
तव शुभ आशीष माँगें,
गायें  तव जयगाथा। 

अब न करो विलम्ब, हम दुखिया सरन तिहारो 
आओ, 
सुनकर हमारे प्राणों की पुकार, कुछ तो विचारो।  

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