मंगलवार, 19 अगस्त 2014

पति : नाम एक रूप अनेक

        (1)
पति अपने प्रथम आयाम के 
एक चरण में 
पालक होता है।  
उसकी व्युत्पत्ति है उसी शब्द-मूल से 
जहाँ से पिता का, 
जो देता है अन्न-वस्त्र,
करता है रक्षा,
ढोता है दायित्व, 
पूरे परिवार का
संचालक होता है। 
नारी आती है  
भर्ता के हाथ में
होकर परिणीता,     
तब नारी भार्या होती है । 

पति अपने प्रथम आयाम के 
इतर चरण में 
साथी होता है। 
पति बनता है स्थपति 
करता है मदद 
घरौंदा बनाने में,
उसको बसाने में,
मिलजुल कर देने स्नेह को मूर्त रूप 
जिसमें प्रेम, वात्सल्य बन उभरता है; 
पेशानी का पसीना 
आँचल में दूध बन उतरता है,
और तब कांता बनती है, 
सहधर्मिणी, जाया, कुटुम्बिनी।             

पति अपने प्रथम आयाम के 
अन्य चरण में 
उपभोक्ता होता है। 
तब नारी  
पालिता नहीं, साथी नहीं,
भोग्या बन जाती है,
तब उसके नाम हैं काव्यपूर्ण, 
रमणी, रामा, वरारोहा, सुश्रोणि 
और, कदाचित, नितम्बिनी भी  
नारी बन जाती है वस्तु या चीज़
जो होती है निष्प्राण, 
भावनाविहीन, 
जिसका रोना या हँसना,
हर्ष या विषाद,
मात्र एक कविता है, 
असलियत से दूर 
और फंतासी की उपज । 

पति अपने प्रथम आयाम के 
अंतिम चरण में 
बन जाता है चौपाया । 
जानवर । 
रेपिस्ट । 
गोश्त का भूखा,
ख़ून का प्यासा, 
तब पत्नी न पालिता है,
न कांता है, न ललना है,           
कुछ नहीं, बेशक, और कुछ नहीं,
केवल गोश्त का एक टुकड़ा है 
गर्म, लज़ीज़, ज़ायकेदार। 

       (2) 
पति के दूसरे आयाम में 
अनेक चरण हैं,
गोजर की तरह ।  
पति (खालिस), कुलपति, 
भूमिपति, पूँजीपति,
नरपति (नारीपति नहीं), 
भूपति, राष्ट्रपति,
अगैरह, बगैरह। 
और हाँ,
उपपति का भी है प्रावधान,
उपपति, जो होता है,
अंग्रेज़ी में पएर'मूर,
संस्कृत में जार,
हिंदी में यार,
और पति की अनुपस्थिति में 
होता है भतार   

     (3) 
दोस्तो, जाते-जाते 
एक बात और कह दूँ,
इन दोनों आयामों का  
है एक कार्टेसिअन प्रोडक्ट।  
इस माजरे का हिसाब
किसी ऐसे आदमी से पूछो
जिसके रियाज़िआत से हों ताल्लुक़ात,  
लेकिन वह किसी नारी का पति हो  

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पएर'मूर (paramour) = जार

1 टिप्पणी:

  1. उम्दा, लजीज और जायकेदार
    पति, उसकी कविता व यार...

    मज़ा आ गया...

    और की प्रतीक्षा मे
    भूखा

    मेरा मै ///

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