रविवार, 3 अगस्त 2014

तब्दील हुए मंजर, पैग़ाम वही है

पाला भरम कि रात लाएगी नयी  सुबह,
पर मुफ़लिसी के दौर सुबहोशाम वही है  

हर कश्मकश का आख़री ज़बाब एक सा,   
हिक़मत तो है बदल रहीअंजाम  वही है  

सूरज है सर पै तप रहाभट्ठी बनी जमीं
जो नाम देंक़ुबूलमग़र काम वही है  

हर   चीज़  के हैं  मोल  आसमान छू रहे,     
दिन-भर के पसीने का, मगरदाम वही है  

हाँआप से बदल के वो हुज़ूर बन गए 
हम तुम से तू बनेहमारा नाम वही है  

मुंसिफ़ बदल गए हैंअदालत बदल गयी,
कानून वही है, सर-इल्ज़ाम वही है        

चीतों की ज़गह भेंड़ियेपर भेड़ के लिए  
तब्दील हुए मंजरपैग़ाम वही है  


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